Shayari....कि मेरे चिराग़ हवा के ख़िलाफ़ जलते क्यूँ हैं....

मेरे अंदाज़ ज़माने को खलते क्यूँ हैं..... .... ... .. . कि मेरे चिराग़ हवा के ख़िलाफ़ जलते क्यूँ हैं....

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